खगड़िया में त्रिकोणीय जंग का संग्राम! निर्दलीय मनीष सिंह बने चुनावी हलचल का केंद्र, जनता के दिलों में ‘बदलाव’ की लहर…

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खगड़िया में त्रिकोणीय जंग का संग्राम! निर्दलीय मनीष सिंह बने चुनावी हलचल का केंद्र, जनता के दिलों में ‘बदलाव’ की लहर…


प्रवीण कुमार प्रियांशु। खगड़िया

बिहार की राजनीति में इस बार खगड़िया विधानसभा सीट सुर्खियों में है — और वजह है एक अप्रत्याशित मोड़।
जहां अब तक मुकाबला एनडीए बनाम महागठबंधन के बीच सीमित माना जा रहा था, वहीं अब निर्दलीय उम्मीदवार मनीष कुमार सिंह ने इस पारंपरिक समीकरण को पूरी तरह हिला दिया है।

निर्दलीय की बढ़ती ताकत,दोनों गठबंधनों में खलबली

महागठबंधन से कांग्रेस के चंदन यादव और एनडीए से जदयू के बबलू मंडल के बीच सीधी टक्कर की संभावना थी। मगर जैसे-जैसे चुनावी दिन नजदीक आते जा रहे हैं, मनीष सिंह का अभियान हर गांव और गली में गूंज रहा है।उनका “जनता से सीधा संवाद” और जाति-पात से ऊपर उठकर बदलाव की बात लोगों को आकर्षित कर रही है।चुनावी गलियारों में अब चर्चा यही है — “क्या खगड़िया से कोई निर्दलीय उम्मीदवार इतिहास रचने जा रहा है?”

एनडीए का स्टार प्रचार,लेकिन मैदान में चुनौती बरकरार

एनडीए ने खगड़िया की सीट को लेकर पूरा दम लगाया है।केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, भोजपुरी स्टार सांसद मनोज तिवारी जैसे दिग्गज नेताओं ने बबलू मंडल के समर्थन में रोड शो और सभाएं की हैं।
अमित शाह ने अपने भाषण में कहा — “खगड़िया का विकास एनडीए के साथ ही संभव है।”
लेकिन मनीष सिंह के रोड शो और नुक्कड़ सभाओं में उमड़ती भीड़ इन दावों को सीधे चुनौती दे रही है।

मुस्लिम समुदाय का समर्थन और ‘स्थानीय बनाम बाहरी’ की बहस

शुक्रवार को माड़र इलाके में मुस्लिम समुदाय द्वारा मनीष सिंह का जबरदस्त स्वागत हुआ।
राजनीतिक विशेषज्ञ मानते हैं कि अगर यह उत्साह मतदान में तब्दील हुआ, तो पूरा समीकरण उलट सकता है।उधर, महागठबंधन “स्थानीय चेहरा” बताकर चंदन यादव को बढ़त दिलाने की कोशिश में है, जबकि एनडीए विकास के एजेंडे पर टिका है।
इन दोनों के बीच मनीष सिंह ने ‘जनता के उम्मीदवार’ के रूप में एक नया विकल्प खड़ा कर दिया है।

युवाओं, महिलाओं और किसानों का साथ — नई राजनीति की आहट

मनीष सिंह के प्रचार में युवा वर्ग, महिलाएं और किसान समुदाय खास तौर पर दिख रहे हैं।
उनका सीधा संदेश — “मैं नेता नहीं, सेवक हूं” — आम मतदाताओं के बीच गहराई से उतर रहा है।
यही वजह है कि अब खगड़िया की गलियों में एक नया नारा सुनाई दे रहा है —
“अबकी बार, जनता का उम्मीदवार सरकार!”

विश्लेषकों की राय — हवा में बदलाव की गंध

राजनीतिक जानकारों का कहना है कि इस बार खगड़िया बदलाव के मूड में है।
लोग जातीय राजनीति और गठबंधन के समीकरणों से थक चुके हैं।वे अब ऐसे चेहरे की तलाश में हैं जो सिस्टम से बाहर रहकर भी जनता की आवाज बने — और मनीष सिंह इस उम्मीद का चेहरा बनते दिख रहे हैं।

कुल मिलाकर, खगड़िया की जंग अब सिर्फ दो गठबंधनों की नहीं रही।
यह अब त्रिकोणीय मुकाबले का चुनावी रणक्षेत्र बन चुका है —जहां जनता बनाम गठबंधन की लड़ाई तय करेगी कि बिहार की राजनीति किस दिशा में जाएगी।

क्या मनीष सिंह निर्दलीय होते हुए भी इतिहास रच पाएंगे?
यह सवाल अब पूरे बिहार की सियासत में गूंज रहा है।
नतीजे जो भी हों, लेकिन इस बार खगड़िया में लोकतंत्र का सबसे असली चेहरा नजर आ रहा है — जनता का।

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