शुम्भा पंचायत की घोर उपेक्षा पर फूटा जनाक्रोश;एनडीए नेताओं को मुख्य मार्ग से रोका,जर्जर रास्ते से जाने को किया मजबूर – मुख्यमंत्री के नाम सौंपा गया आवेदन, खेल मैदान, अस्पताल, सड़क, बिजली और शिक्षा की माँग, शुम्भा को प्रखंड बनाने की भी उठी मांग…
प्रवीण कुमार प्रियांशु। खगड़िया
खगड़िया जिले के अलौली प्रखंड अंतर्गत शुम्भा पंचायत में रविवार को विकास की घोर उपेक्षा के खिलाफ जनता का गुस्सा सड़कों पर उतर आया। हजारों ग्रामीणों—जिनमें युवा, बुजुर्ग और महिलाएं शामिल थीं—ने एनडीए के अलौली विधानसभा सम्मेलन में जा रहे नेताओं को विश्वकर्मा पेट्रोल पंप के समीप मेघु ढ़ाला के पास रोक दिया। नेताओं को मजबूर होकर नागरटोली के जर्जर रास्ते से गुजरना पड़ा।ग्रामीणों के विरोध के कारण मंत्री जी को भी अपना मार्ग बदलना पड़ा। वे सीधे सभा स्थल पहुंचे, कार्यक्रम किया और बिना ग्रामीणों की ओर देखे वापस लौट गए। वहीं, आक्रोशित ग्रामीण घंटों तक सड़क पर जमे रहे और नेताओं की उपेक्षा पर नारेबाजी करते रहे।
बार-बार आश्वासन, मगर जमीनी काम शून्य…
ग्रामीणों का कहना है कि पंचायत की स्थिति पिछले कई दशकों से बेहद दयनीय है। शिक्षा, स्वास्थ्य, सड़क और बिजली जैसी बुनियादी सुविधाएं आज भी सपना बनी हुई हैं। हर चुनाव में बड़े-बड़े वादे किए गए, नेताओं ने पंचायत की तस्वीर बदलने का भरोसा दिलाया, लेकिन हकीकत में हालात जस के तस बने हुए हैं।
मुख्यमंत्री के नाम सौंपा आवेदन…
ग्रामीणों ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नाम जदयू के राष्ट्रीय महासचिव मनीष वर्मा को आवेदन सौंपा, जिसमें पंचायत की बदहाली का विस्तार से उल्लेख किया गया है। आवेदन में रखी गई प्रमुख माँगें हैं—
शुम्भा पंचायत में एक बड़ा खेल मैदान का निर्माण…
24×7 एडिशनल हेल्थ सेंटर की स्थापना…
शुम्भा से अलौली तक मुख्य सड़क का निर्माण…
पंचायत में विद्युत सब-ग्रीड की स्थापना…
एक आवासीय विद्यालय का निर्माण…
पंचायत के +2 विद्यालय को स्नातक स्तर तक उन्नत करना…
“अब सिर्फ कागजी वादे नहीं” – ग्रामीणों की चेतावनी…
ग्रामीणों ने कहा कि यदि इन माँगों पर अविलंब कार्रवाई नहीं की गई, तो वे लोकतांत्रिक आंदोलन छेड़ने को मजबूर होंगे। उनका कहना है कि अब केवल घोषणाओं और कागजी आश्वासनों से काम नहीं चलेगा,बल्कि ठोस और जमीनी कदम उठाने होंगे।
चुनावी राजनीति बनाम जनता की जरूरतें…
विश्लेषकों का मानना है कि शुम्भा पंचायत का यह विरोध केवल स्थानीय समस्या तक सीमित नहीं है, बल्कि यह बिहार की ग्रामीण राजनीति का आईना है। नेताओं के लिए चुनावी रैलियाँ और सम्मेलन तो प्राथमिकता बनते हैं, लेकिन ग्रामीणों की बुनियादी समस्याएँ चुनाव के बाद भूला दी जाती हैं।
शुम्भा पंचायत का सवाल यही है—“कब तक हम विकास के नाम पर ठगे जाएंगे?”
ग्रामीणों ने आवेदन की प्रतिलिपि सांसद, विधायक, मंत्री और जिलाधिकारी समेत सभी जनप्रतिनिधियों व अधिकारियों को भेज दी है। अब देखना यह है कि सरकार और प्रशासन इस चेतावनी को कितना गंभीरता से लेता है।