परीक्षा संचालन में नियमों की अनदेखी!प्रधानाध्यापक रहते सहायक शिक्षक बने केन्द्राधीक्षक, शिक्षा विभाग की कार्यप्रणाली पर उठे सवाल…

प्रवीण कुमार प्रियांशु। खगड़िया

खगड़िया में बिहार केन्द्रीय चयन पार्षद द्वारा आयोजित सिपाही भर्ती परीक्षा-2025 को लेकर जिला प्रशासन व शिक्षा विभाग ने केंद्राधीक्षकों की जो सूची जारी की है, वह अब विवादों के घेरे में आ गई है। शिक्षा विभाग की ओर से जारी इस सूची में कई ऐसे नाम शामिल हैं, जिन्होंने विभागीय नियमों और परंपराओं को ठेंगा दिखाते हुए अनियमित तरीके से परीक्षा केंद्र की जिम्मेदारी हासिल कर ली है।
सबसे बड़ा उदाहरण उत्क्रमित मध्य विद्यालय, सन्हौली (खगड़िया) का है। यहां की प्रधानाध्यापक नीलीमा कुमारी को परीक्षा केंद्र का केन्द्राधीक्षक बनाया गया है, जो कि विभागीय दृष्टिकोण से सर्वथा उपयुक्त है। लेकिन इसी विद्यालय के सहायक शिक्षक विजय कुमार सिंह को भी एक अन्य परीक्षा केंद्र – मध्य विद्यालय, हाजीपुर उत्तर – का केन्द्राधीक्षक बना दिया गया है, जो नियमों और प्रशासनिक मानकों के विपरीत प्रतीत होता है।
विभागीय परिपाटी के विरुद्ध फैसला?
परीक्षा संचालन के लिए सामान्यतः वरिष्ठ शिक्षक या प्रधानाध्यापक को ही केन्द्राधीक्षक की जिम्मेदारी दी जाती है, ताकि वे समुचित अनुभव और प्रशासनिक योग्यता के आधार पर परीक्षा को शांतिपूर्ण व कदाचारमुक्त तरीके से संचालित कर सकें। वहीं सहायक शिक्षक को केन्द्राधीक्षक के सहयोग में कार्य करने हेतु प्रतिनियुक्त किया जाता है। लेकिन इस मामले में न केवल सहायक शिक्षक को केंद्राधीक्षक बना दिया गया है, बल्कि उनके विद्यालय में पहले से कार्यरत प्रधानाध्यापक की मौजूदगी को भी दरकिनार कर दिया गया है।
प्रभारी प्रधानाध्यापक की भी अनदेखी!
वर्तमान समय में जिले के कई विद्यालयों में प्रभारी प्रधानाध्यापक कार्यरत हैं, जो वरिष्ठता और अनुभव के आधार पर परीक्षा केंद्र की जिम्मेदारी निभाने में सक्षम हैं। ऐसे में उनकी उपेक्षा कर एक सहायक शिक्षक को केन्द्राधीक्षक बनाना विभागीय नीति पर सवाल खड़ा करता है।
क्या है विभाग की मंशा?
शिक्षा विभाग की इस नियुक्ति प्रक्रिया पर शिक्षकों एवं बुद्धिजीवियों में रोष है। उनका मानना है कि परीक्षा जैसे गंभीर व गोपनीय कार्य में इस तरह की मनमानी न केवल परीक्षा की निष्पक्षता पर प्रश्नचिह्न लगाती है, बल्कि इससे विभागीय आचार-संहिता की भी अवहेलना होती है। कुछ शिक्षक संगठनों ने यह भी आशंका जताई है कि ऐसे निर्णयों में व्यक्तिगत प्रभाव या सिफारिश की भूमिका से इनकार नहीं किया जा सकता।
पारदर्शिता की मांग
इस पूरे प्रकरण को लेकर कई शिक्षक संगठनों ने जिला प्रशासन एवं बिहार विद्यालय परीक्षा समिति से जवाबदेही की मांग की है। साथ ही मांग की है कि केन्द्राधीक्षकों की पुनः समीक्षा कर नियमसंगत रूप से अनुभवशील प्रधानाध्यापकों को ही यह जिम्मेदारी सौंपी जाए।














































