खगड़िया में त्रिकोणीय जंग का बिगुल: निर्दलीय शिक्षक नेता मनीष कुमार सिंह की एंट्री से बदल गया समीकरण, एनडीए-महागठबंधन की मुश्किलें बढ़ीं…

प्रवीण कुमार प्रियांशु। खगड़िया

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के पहले चरण में खगड़िया विधानसभा सीट अब सूबे की सबसे चर्चित सीटों में शुमार हो गई है। राजनीतिक गलियारों में इस सीट को लेकर चर्चा जोरों पर है — वजह हैं निर्दलीय उम्मीदवार मनीष कुमार सिंह, जो एक शिक्षक नेता और समाजसेवी के रूप में खगड़िया की जनता के बीच गहरी पैठ रखते हैं। जन सुराज पार्टी से इस्तीफा देकर निर्दलीय मैदान में उतरने वाले मनीष कुमार सिंह ने न केवल एनडीए और महागठबंधन दोनों खेमों की नींद उड़ाई है, बल्कि पूरे चुनावी गणित को नया मोड़ दे दिया है।
निर्दलीय मनीष का उभार बना सियासी सेंटर ऑफ अट्रैक्शन
मनीष कुमार सिंह — बिहार राज्य शिक्षक संघ के प्रदेश उपाध्यक्ष, शिक्षा सुधार के पैरोकार, बाढ़ राहत और स्वच्छता अभियान के सक्रिय योद्धा — अब “जनता के उम्मीदवार” के रूप में उभरे हैं। लंबे समय से समाजसेवा में जुटे मनीष को खगड़िया की जनता एक ईमानदार और जमीनी चेहरा मानती है। उनके समर्थकों का कहना है, “हम नेता नहीं, प्रतिनिधि चुन रहे हैं। मनीष बाबू जनता के बीच रहते हैं, मंचों पर नहीं।”निर्दलीय दावेदारी के बाद उनका प्रचार अभियान जनांदोलन की शक्ल ले चुका है। गांव-गांव, टोला-मोहल्लों, चौक-चौराहों और बाजारों में उनके समर्थन में सभाएं और नुक्कड़ मीटिंग हो रही हैं। महिला समूह, शिक्षक वर्ग, युवा संगठन और व्यापारी समुदाय खुलकर उनके पक्ष में उतर आए हैं। कई पंचायतों में स्थानीय जनप्रतिनिधि तक उनके प्रचार में देखे जा रहे हैं।

गठबंधनों की बढ़ी टेंशन, वोट बैंक पर खतरा

खगड़िया सीट पर पहले जहां मुकाबला एनडीए और महागठबंधन के बीच माना जा रहा था, वहीं अब समीकरण पूरी तरह बदल गया है। दोनों गठबंधनों के उम्मीदवार पारंपरिक वोट बैंक को बचाने में जुटे हैं, लेकिन मनीष का उभार जातीय और दलगत राजनीति के समीकरणों को ध्वस्त करता दिख रहा है।
राजनीतिक जानकारों का कहना है कि “मनीष कुमार सिंह का जनाधार शिक्षित और जागरूक मतदाताओं में मजबूत है, जो इस बार किसी पार्टी प्रतीक नहीं बल्कि व्यक्ति के काम को वोट देना चाहते हैं।”
बदलाव की लहर और जनता का मूड
मनीष ने स्पष्ट कहा है — “जनता अब वादों से नहीं, काम से प्रभावित होती है। मैं शिक्षा, रोजगार, बाढ़ नियंत्रण और पारदर्शी विकास के लिए मैदान में हूं। यह लड़ाई व्यवस्था परिवर्तन की है, और जीत जनता की होगी।”उनके समर्थक ‘बदलाव का नाम मनीष’ नारे के साथ प्रचार में जुटे हैं। युवाओं और महिलाओं में खासा उत्साह देखने को मिल रहा है। शहर से लेकर ग्रामीण अंचलों तक उनका जनसंपर्क अभियान रफ्तार पकड़ चुका है।
एफआईआर के बावजूद हौसला बुलंद
चुनावी गर्मी के बीच आचार संहिता उल्लंघन के आरोप में मनीष पर एफआईआर दर्ज की गई है, मगर इससे उनका मनोबल तनिक भी नहीं डिगा। उन्होंने इसे “राजनीतिक साजिश” करार देते हुए कहा कि वे जनता के भरोसे मैदान में टिके रहेंगे। उनके समर्थकों का दावा है कि “दबाव और दमन से जनता की आवाज नहीं दबेगी।”
तीन दिनों बाद वोटिंग, खगड़िया बना बिहार का ‘हॉटस्पॉट’
6 नवंबर को मतदान होना है और अब जब सिर्फ 72 घंटे बचे हैं, तो पूरा खगड़िया चुनावी उबाल पर है। होटल, चौक-चौराहे, चाय की दुकानें — हर जगह चर्चा सिर्फ एक ही सवाल की है:क्या निर्दलीय मनीष कुमार सिंह सत्ता की चौखट तक पहुंच पाएंगे, या पारंपरिक गठबंधन फिर बाजी मार लेंगे?14 नवंबर को परिणाम घोषित होंगे, लेकिन इस बात में कोई दो राय नहीं कि खगड़िया की यह जंग अब सिर्फ एक विधानसभा चुनाव नहीं रही — यह जनता बनाम व्यवस्था की लड़ाई बन चुकी है।फिलहाल, पूरे बिहार की निगाहें खगड़िया पर टिकी हैं — जहां एक शिक्षक नेता ने सियासत के समीकरण ही बदल दिए हैं।

















































महागठबंधन से कांग्रेस के चंदन यादव और एनडीए से जदयू के बबलू मंडल के बीच सीधी टक्कर की संभावना थी। मगर जैसे-जैसे चुनावी दिन नजदीक आते जा रहे हैं, मनीष सिंह का अभियान हर गांव और गली में गूंज रहा है।उनका “जनता से सीधा संवाद” और जाति-पात से ऊपर उठकर बदलाव की बात लोगों को आकर्षित कर रही है।चुनावी गलियारों में अब चर्चा यही है — “क्या खगड़िया से कोई निर्दलीय उम्मीदवार इतिहास रचने जा रहा है?”































